मंगलवार, सितंबर 30, 2008

भाव और कर्म

भाव भाषा को मुखर कर देता है-- पुनः, भाव ही कर्म को नियंत्रित करता है, और, भावना से ही भाव उदित होता है ; अतएव अपनी भावना को जितने सुंदर, सुश्रृंखल, सहज, अविरोध एवं उन्नत ढंग की बनाओगी-- तुम्हारी भाषा, व्यवहार, और कर्मकुशलता भी उतनी सुंदर अविरोध और उन्नत ढंग की होगी। 10
--: श्री श्री ठाकुर, नारीनीति

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